🌿 स्वर्गीय श्री त्रिवेन्द्र सिंह पंवार — उत्तराखंड आंदोलन का निर्भीक प्रहरी, सादगी का प्रतीक, और जनसंघर्ष का अमर योद्धा

🌿 स्वर्गीय श्री त्रिवेन्द्र सिंह पंवार —

 उत्तराखंड आंदोलन का जीवंत दस्तावेज़, संघर्ष का चेहरा और आने वाली पीढ़ियों की प्रेरणा 🌿




⚠️ कृपया इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें — तभी इसका उद्देश्य पूर्ण होगा।

🔥 भारत के स्वर्गीय श्री त्रिवेन्द्र सिंह पंवार पर सर्वश्रेष्ठ शोध-आधारित ब्लॉग 🔥

✍️ लेखक: महावीर सिंह कैंतुरा
(परिवार, साथियों, मित्रों और इतिहास के ठोस प्रमाणों पर आधारित)




🌸 प्रस्तावना — “आज मैं कह रहा हूँ…”

आज उनकी पहली पुण्यतिथि है,

और मैं — महावीर सिंह कैंतुरा, लेखक, समाजसेवी एवं वेलनेस कोच —
मन से यह महसूस कर रहा हूँ कि
उनके बारे में जो कुछ मैंने देखा, सुना, जाना और अनुभव किया,
उसे अब शब्दों में उतारना मेरी जिम्मेदारी है।

यह किसी प्रकार का महिमामंडन नहीं,
बल्कि तथ्य, इतिहास, संघर्ष और भावनाओं की सच्चाई है — जैसी है, वैसी।

मेरे लिए वे सिर्फ एक आंदोलनकारी नहीं थे —
वे परिवार का हिस्सा थे,
एक मार्गदर्शक थे,
और एक ऐसे व्यक्ति थे जो हर मुलाकात में
सम्मान, सहजता और सच्चा अपनापन दे जाते थे।

मैं उनके बड़े भाई का दामाद हूँ।
मेरे कज़िन गौरव उनके सगे दामाद हैं —
लेकिन वे हमेशा मुझे
“बड़ा दामाद” कहकर बुलाते थे।
यह संबोधन सिर्फ शब्द नहीं,
उनके प्रेम और अपनत्व की पहचान था।




जब भी वे मेरे काम, जीवन या विचारों के बारे में पूछते,
उनके शब्दों में सम्मान,
व्यवहार में विनम्रता,
और बातचीत में सहजता होती थी।

उनकी सबसे बड़ी खूबी —

वह किसी को भी कभी छोटा महसूस नहीं होने देते थे।

इतना संघर्ष, इतनी कठिनाइयाँ,
इतनी राजनीतिक और सामाजिक यात्राएँ झेलने के बाद भी
उनका व्यक्तित्व इतना विनम्र हो… यह अत्यंत दुर्लभ है।


आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूँ,
उनकी अनगिनत यादें,
परिवार की भावनाएँ,
उनके साथ चलने वालों की बातें,
और इतिहास के पन्ने —
सब मिलकर एक जीवंत कहानी बन गए हैं।

और मेरा प्रयास है कि यह कहानी
सिर्फ परिवार तक सीमित न रहे —
बल्कि हर उत्तराखंडी के दिल तक पहुँचे


अध्याय 1 — जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन




(श्री तेग सिंह पंवार — बड़े भाई की दृष्टि से)



📍 जन्म — भरपुरिया गाँव, भदूरा पट्टी, लंबगांव, टिहरी गढ़वाल

एक छोटा, साधारण पहाड़ी गाँव।
कठोर जीवन।
सीमित साधन।
पर उसी मिट्टी ने उत्तराखंड को एक महान संघर्षकर्ता दिया।

📍 10–11 वर्ष की उम्र में ऋषिकेश आगमन

बेहतर पढ़ाई और जीवन के लिए
परिवार ने उन्हें ऋषिकेश भेजा।
यहीं से उनका वास्तविक संघर्ष शुरू हुआ।

📍 शिक्षा + काम — कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारियाँ

5वीं कक्षा के बाद ही
उन्होंने पढ़ाई और कमाई दोनों शुरू कर दीं।

वे —

  • टैक्सी चलाते

  • प्रिंटिंग प्रेस में काम करते

  • दिहाड़ी मजदूरी करते

  • और साथ ही पढ़ाई जारी रखी

  • बाद में प्राइवेट हाई स्कूल से शिक्षा पूरी की

उनके भीतर बचपन से ही
मेहनत, लगन और संघर्ष की ज्वाला थी।


📍 Om Travels (लगभग 1987)

युवावस्था में उन्होंने Om Travels शुरू की।

उनका स्वभाव —

  • मेहनती

  • ईमानदार

  • जोखिम उठाने वाला

  • व्यवहार-कुशल

था, इसलिए उनका व्यवसाय सफल हुआ।

📍 लेकिन उनके लिए सफलता से बड़ी चीज़ क्या थी?

  • उत्तराखंड का भविष्य

  • आम लोगों के अधिकार

  • जल-जंगल-जमीन की रक्षा

  • आंदोलन की दिशा

  • और अपनी मिट्टी की अस्मिता

तेग सिंह पंवार जी कहते हैं —

“उसके लिए पैसा सिर्फ साधन था — उद्देश्य नहीं।”


अध्याय 2 — 25 जुलाई 1979: UKD का जन्म और जीवन का मोड़




🖋️ जगमोहन रौतेला जी की कलम से — 24 जुलाई 1979 की वह ऐतिहासिक सुबह

यह वही दस्तावेज़ है—
जिसकी पीली पड़ चुकी पुरानी पन्नियों में
उत्तराखण्ड आंदोलन की पहली धड़कन दर्ज है।

मसूरी के अनुपम होटल में
24 जुलाई 1979 को आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में
उपस्थित हर व्यक्ति का नाम,
हर विचार,
हर संकल्प—
आज भी इन काग़ज़ों में जिंदा है।

चार पृष्ठों का यह दस्तावेज़
सिर्फ एक बैठक का लेखा-जोखा नहीं,
पहाड़ के दर्द और भविष्य की पुकार का साक्षात् प्रमाण है।

यही वह जगह थी जहाँ पहली बार
पूर्ण स्पष्टता के साथ लिखा गया कि—
क्यों उत्तराखण्ड को अलग राज्य बनना अनिवार्य है।

और फिर,
सम्मेलन में उपस्थित सभी लोगों ने
एक स्वर में वह संकल्प दोहराया,
जो आने वाले वर्षों की लड़ाई की आत्मा बन गया—

**“जब तक उत्तराखण्ड अलग राज्य नहीं बनेगा,

हम चैन से नहीं बैठेंगे।”**

इसी ऐतिहासिक क्षण में,
यही उसी कमरे की चारदीवारी के भीतर,
पहली बार यह घोषणा हुई कि—

**“हम एक राजनीतिक दल बनाएँगे

जिसका नाम होगा — उत्तराखण्ड क्रांति दल (UKD)।”**

और उसी क्षण,
उस दिन,
उस दस्तावेज़ पर दर्ज शब्दों के साथ—

उत्तराखण्ड क्रांति दल का जन्म हुआ।

24 जुलाई 1979 — मसूरी, अनुपम होटल

उत्तराखण्ड के इतिहास में
वह पवित्र तिथि बन गई
जिसने आगे चलकर
राज्य गठन की लड़ाई को दिशा,
नेतृत्व,
और संगठित आंदोलन की शक्ति दी।


संगठन की पहली कमेटी:

  • G. D. पंत — अध्यक्ष

  • D. P. Uniyal — उपाध्यक्ष

  • कृपाल सिंह रावत — महामंत्री

  • नित्यानंद भट्ट — महामंत्री



उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्यों में से एक आदरणीय श्री कृपाल सिंह रावत जी से बातचीत हुई, जिससे ज्ञात हुआ कि 1980 में कृपाल सिंह रावत जी ने

श्री त्रिवेन्द्र सिंह पंवार को संगठन में जोड़ा।

यह वर्ष उनके जीवन में केवल बदलाव नहीं था —
यह समर्पण का आरंभ था।

वे —

  • संस्थापक सदस्यों में शामिल हुए

  • शुरू से ही आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता बने

  • आगे चलकर अध्यक्ष, संरक्षक और जननायक बने

                                                 उन्होंने क्या किया?

  • अपनी कमाई आंदोलन में लगा दी

  • Om Travels तक बेच दी

  • गढ़वाल के कठोर इलाकों में संगठन पहुँचाया

  • UKD को जनता का मंच बनाया

  • पार्टी को मुद्दों पर केंद्रित रखा

उनके बड़े भाई कहते हैं—

“उसने अपनी कमाई का हर बड़ा हिस्सा आंदोलन में लगा दिया।”


अध्याय 3 — 23 अप्रैल 1987: संसद में इतिहास रचने वाला पत्र-बम




लोकसभा का प्रश्नकाल चल रहा था।
देश में सुरक्षा कड़ी थी।

अचानक दर्शक दीर्घा से आवाज़ गूंजी —

“आज दो! अभी दो! उत्तराखंड राज्य दो!”

और पर्चों का गुच्छा सदन में फेंका गया।
यह घटना किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं थी —
बल्कि एक शांतिपूर्ण, साहसिक और प्रतीकात्मक विरोध था।

तथ्य — बिना अतिशयोक्ति

  • पर्चे जूतों में मोज़ों के अंदर छिपाए गए थे

  • सुरक्षा जांच में यह पकड़ा नहीं गया

  • प्रश्नकाल समाप्त होने से ठीक पहले यह कार्य किया गया

  • तत्काल हिरासत में लिया गया

  • पूछताछ में स्पष्ट हुआ:
    “मंशा केवल उत्तराखंड की आवाज़ पहुँचाना थी।”

  • कुछ दिन तिहाड़ में रखकर रिहा किया गया

  • AIR और BBC ने इसे प्रमुख खबर बनाया

  • पूरे देश में उत्तराखंड राज्य की मांग गूंज उठी

उन्होंने कहा था—

“यह किसी के खिलाफ नहीं —
सिर्फ अपने राज्य की मांग को सदन तक पहुँचाने का प्रयास था।”


अध्याय 4 — 1994: आंदोलन का सबसे दर्दनाक अध्याय

1994 के आंदोलन में
लाठीचार्ज के दौरान
उनके दोनों पैर टूट गए।

वे एक वर्ष से अधिक अस्पताल में रहे,
लेकिन उनके संघर्ष में कभी कमी नहीं आई।


अध्याय 5 — UKD के संगठन मंत्री सन्नी भट्ट बताते हैं






“मैंने 10 वर्ष उनके साथ काम किया।
उनके जैसा सिद्धांतवादी, शांत और व्यवहारकुशल नेता नहीं देखा।”

मुख्य बातें:

  • वर्ष 2000 में नैतिक आधार पर इस्तीफा देने वाले इकलौते संरक्षक

  • UCC विरोध में भूख हड़ताल

  • राज्य के हर गाँव का दौरा

  • UKD को टूटने से बचाया

                                                   

                   तांडव रैली — 15,000 लोगों का नेतृत्व

“मुख्यमंत्री आवास तक 15,000 लोगों की तांडव रैली—
इसका नेतृत्व उन्होंने अद्भुत सहजता से किया।”

उनकी पहचान—

  • सादगी

  • स्पष्टता

  • शांत निर्णय

  • संगठन क्षमता

  • व्यवहार में विनम्रता










अध्याय 6 — D. P. रतूड़ी जी: एक मित्र की आँखों से





Ratudi जी कहते हैं—

  • “वे मस्त-मौला थे।”

  • “दिलदार थे।”

  • “यारों के यार थे।”

वे एक घटना याद करते हैं—

“स्व. विजेंद्र रतूड़ी के अंतिम संस्कार के लिए हरिद्वार जाना था।
मैंने बस पूछी।
उन्होंने कहा — ‘आप मेरी कार से चलेंगे।’
पूरे रास्ते मेरा ख्याल रखा।”

वे आगे बताते हैं—

  • वे स्वतंत्रता सेनानी परिवारों का सम्मान करते थे

  • वॉलीबॉल में अत्यंत सक्रिय और उत्साही थे

  • साहस और निडरता उनका स्वभाव था


.      अध्याय 7 — परिवार की दृष्टि: तीन सजीव चित्र



1️⃣ गौरव जेठूड़ी (सगे दामाद) 

  • प्रभावशाली व्यक्तित्व

  • आकर्षक पहनावा

  • पहाड़ी संस्कृति के प्रेमी

  • स्वास्थ्य के प्रति सजग

  • निडर और स्पष्टवादी

“जिंदगी डर कर नहीं, हिम्मत से जी जाती है।”

यह सीख आज भी गौरव जी की प्रेरणा है।


2️⃣ मनीष भट्ट (छोटे दामाद)

  • “पहले किताबों में पढ़ा था…
    मिलने के बाद समझ आया कि उन्हें शेर क्यों कहा जाता है।”

  • UKD के केंद्रीय अध्यक्ष

  • जेल यात्राएँ, भूख हड़ताल, अनशन

  • भूमि कानून और हक-हकूक पर गहरी पकड़

उनका निधन—

“राजनीति ही नहीं, विचारधारा की भी अपूरणीय क्षति है।”


3️⃣ प्रियंका पंवार (भतीजी)

  • “वे मेरे ताऊजी थे, मेरी प्रेरणा थे।”

  • सादगी, समर्पण और संघर्ष—
    उनका जीवन एक सीख

  • “अपने राज्य के लिए कुछ करो” —
    उनकी सबसे बड़ी शिक्षा

  • संसद पत्र-बम —
    परिवार के गर्व का क्षण


अध्याय 8 — छिद्दरवाला में योगदान



1978 में विवाह के बाद वे छिद्दरवाला आए।

यहां उन्होंने —

  • पहला बिजली पोल लाने में योगदान

  • रामलीला समिति को सक्रिय किया

  • खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया

  • सामाजिक माहौल में सकारात्मक ऊर्जा भरी

लोग कहते हैं—

“जब वह आते थे, लगता था अब सब ठीक हो जाएगा।”


अध्याय 9 — चुनाव और राजनीतिक भूमिका



उन्होंने —

  • टिहरी से 2 बार सांसद,

  • प्रतापनगर से 2 बार विधायक

का चुनाव लड़ा।

वे जीत नहीं पाए —
लेकिन चुनाव जीतना उनका लक्ष्य ही नहीं था।

उनका उद्देश्य था—

“मुद्दों को आवाज़ देना।”

उनके नेतृत्व में UKD ने—

  • 2002–2007: 4 विधायक

  • 2007–2012: 3 विधायक

  • 2012–2017: 1 विधायक

दिए।


अध्याय 10 — अंतिम समय और दुखद विदाई



24 नवंबर 2024, नटराज चौक, ऋषिकेश।
एक सड़क दुर्घटना में वे घायल हुए।
एम्स ऋषिकेश में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित किया।

पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर फैल गई।


अध्याय 11 — एक युग की विरासत

उनका जीवन था—

  • संघर्ष

  • सादगी

  • समर्पण

  • जनहित

  • और उत्तराखंड आंदोलन की आत्मा

वे किसी पद से बड़े नहीं थे —
वे अपने सिद्धांतों से बड़े थे।


समापन — संतुलित और सच्चा निष्कर्ष

यह लेख
परिवार, साथियों और इतिहास की सच्ची घटनाओं पर आधारित है।

यह एक श्रद्धांजलि ही नहीं —
एक युग की जीवंत कहानी है।

उनकी स्मृति को शब्दों में बाँधना कठिन है,
लेकिन यह प्रयास
उनकी संघर्षगाथा को
आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए है।


🌿 सरकार से विनम्र निवेदन

ऐसे महान आंदोलनकारी के नाम पर
किसी संस्थान, विश्वविद्यालय, मार्ग या स्मारक का नाम अवश्य रखा जाए।

उनकी शोकसभा में
उत्तराखंड क्रांति दल के वरिष्ठ और कद्दावर  नेता काशी सिंह ऐरी ने
छिद्दरवाला के मुख्य चौक का नाम
उनके नाम पर रखने की घोषणा की थी —
लेकिन कार्यवाही अब तक नहीं हुई।

आज नेता आगे निकल गए,
पर ऐसी महान विभूतियाँ
हमारी स्मृति से खोती जा रही हैं।

इस ब्लॉग का उद्देश्य है —
एकजुट होना
और पहला कदम —
छिद्दरवाला चौक का नाम
“त्रिवेन्द्र सिंह पंवार चौक” करना।


🙏 जय हिंद | जय भारत | जय उत्तराखंड 🙏


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Mahaavir Kantura

Mahaavir Kantura is an Author ,Entrepreneur, Health & Wellness Coach & Top Leader at VLCC Wellscience, Direct Selling Vertical Of VLCC, Leading Wellness Brand Of Asia.He is working on the mission of spreading Health Wealth and Happiness.

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